इतनी दूर हो गयी हो हमसे ,तुम्हे हम भुला भी नहीं सकते,
आँखे बंद करते ही तुम्हारा चेहरा याद आता है।
कैसे भुला दू तुम्हे,अब तुम ही बता दो सनम,
किया था कभी जो तुमसे वो वादा याद आता है ।
कभी जाकर बनाया था घरौंदा हमने,
आज टूटा हुआ वो रेत का महल याद आता है।
कभी सोचा ना था मैंने, हम यु ही बिछड़ जायेंगे ,
बचपन का वो रूठना, वो मनाना याद आता है।
चार पल वो जिन्दगी के, वो महफिलों की रौशनी।
दीपक के उजाले में भी गम का अँधेरा याद आता है।
अब इस तन्हाई में घूंट कर मर जाएँगे हम,
हमसे वो छुटा हुआ तुम्हारा दामन याद आता है।
आँखों से निकल पड़े है आंसू, हाँथ भी अब थक गंये है .
मै पूछता हु अपने आप से और -क्या क्या याद आता है।
BY Abdul kadir bedil
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