Thursday, April 5, 2012

बोलो पिता तुम्हे, हम कैसे भुला सकेंगे












कहकर , पिता' मगर हम किसको बुला सकेंगे"
गुरु रूप की  तुम्हारे अब कल्पना करेंगे ,लेकिन पिता तुन्हें हम कैसे भुला सकेंगे"
गुरु रूप में दिया जो ,वह ज्ञान याद तो है' जो भी सृजन किया वो ग्रन्थ साथ तो है "
उस ज्ञान का सहारा हमको प्रकाश  देगा' गुरूवर सृजन तुम्हारा आश देगा "
कहकर पिता मगर हम किसको बुला सकेंगे" बोलो पिता तुम्हे, हम कैसे भुला सकेंगे "

देता जिसे पिता ही,वह प्यार अब कान्हा है' कंधे कान्हा पिता के आधार  वह कान्हा है"
वे हाँथ अब कान्हा है ,जो थप -थप्पा दिए थे .वे नयन अब कान्हा  ,जो मम्ता  मधुर लिए थे"
अब कौन पिता मम्ता को छल- छल्ला  सकेंगे' बोलो पिता तुम्हे हम कैसे भुला सकेंगे"
परिवार बनाया था क्या  छोड़ चले जाने, क्या पयार बढाया था 'दिल तोड़ चले जाने "
हम सिख ही रन्हे थे, उंगली पकड़ कर  चलना ,बान्हे पकड़  कर तुम्हारी सद पथ पर पैर धरना,
अब कौन थाम बान्हे ,हमको  चला सकेंगे' बोलो पिता तुम्हे, हम कैसे भुला सकेंगे "

बोलो, जन्हा कंही भी हो ,बिस्वास तो हमे दो ,निर्मम नहीं हुए हो अभाश  तो हमे दो"
छाया बने रन्हेगे ,हम पर पिता सदा ही ,मम्ताऔर भावना  से होगी नहीं जुदाई,
हम इस तरह दिलाशा, दिल को दिला सकेंगे 'बोलो पिता तुम्हे, हम कैसे भुला सकेंगे "

कोई न यह कह पाए हम है बीना पिता के,हो हौसले हमारे बांके '
मन भव्य भावनाये ,मन में  बिहार करना ' होम भटकने न पांए, हरछन बिचार करना"
है साथ में पिता , यह जग को बता संकेंगे 'बोलो पिता तुम्हे, हम कैसे भुला सकेंगे "



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