Saturday, July 28, 2012

ईश्‍वर को नहीं मानते थे शहीद-ए-आजम भगत सिंह


शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती पर हम उनके जीवन के उस पहलु को छूने जा रहे हैं, जिसमें उन्‍होंने अपने नास्तिक होने का वर्णन किया है। भारत के स्‍वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह ईश्‍वर को नहीं मानते थे। वे आर्य समाजी रीति रिवाजों को मानने वाले परिवार से थे। अंग्रेज शासन में जुल्‍म, असमानता और शोषण को देख उनका ईश्‍वर के ऊपर से विश्‍वास उठ गया, जिसके बाद उन्‍होंने इन सबके खिलाफ लड़ाई को ही अपना धर्म मान लिया।

भगत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, "मैं नास्तिक इसलिए हूं, क्‍योंकि मैं ईश्वर की सत्‍ता को नहीं मानता।" भगत सिंह ने उसके पीछे कई कारण भी बताये। सफलता और असफलता को सर्वशक्तिमान ईश्वर के हाथ में बताए जाने पर शहीद ए आजम ने जवाब दिया, "तुम्हारा रास्ता अकर्मण्यता का है। यह रास्ता किस्मत की घुट्टी पिलाकर देश के नौजवानों को अकर्मण्य बनाने का है। यह कभी भी मेरा रास्ता नहीं हो सकता। इस दुनिया को मिथ्या बताने वाले और इस देश को परछाई या मायाजाल समझने वाले कभी दुनिया की भलाई या इस देश की आजादी के लिए सत्यनिष्ठा से नहीं लड़ सकते। भगत सिंह ने आगे कहा कि जो मिथ्या और परछाई हो उसके लिए संघर्ष कैसा। मेरा देश तो एक जीवित और हसीन हकीकत है तथा मैं इसे मुहब्बत करता हूं।"

मित्रा फणींद्र के यह कहने पर कि इस धरती को स्वर्ग बनाने कितने मसीहा आए और हारकर चले गए। अब तुम आए हो सो दो चार दिन में तुम्हारे हौसलों का भी पता चल जाएगा। भगत सिंह ने जवाब दिया, "सकता है मेरा जीवन चार दिन का हो, लेकिन मेरे हौसले आखिरी सांस तक मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे। इसका मुझे यकीन है। भगत सिंह ने अपने नास्तिक होने की वजह बताते हुए कहा कि आप सर्वशक्तिमान भगवान की बात करते हैं। मैं पूछता हूं कि सर्वाधिक शक्तिशाली होकर भी भगवान गुलामी, शोषण, अन्याय, अत्याचार, भूख, गरीबी, असमानता, महामारी, हिंसा और युद्ध का अंत क्यों नहीं कर देते? और यदि कल मैं नहीं भी रहा तो तब भी मेरे हौसले देश के हौसले बनकर साम्राज्यवादी शोषकों के खात्मे के लिए उनका पीछा करते रहेंगे। मुझको अपने देश के भविष्य पर यकीन है।

भगत सिंह ने आगे कहा, "हर बात के लिए ईश्वर की ओर ताकना भाग्यवाद और निराशावाद है। भाग्यवाद कर्म से भागने का रास्ता है। यह निर्बल, कायर और पलायनवादी व्यक्तियों की आखिरी शरण है।"

उन्होंने अपनी लेखनी से स्पष्ट किया है कि क्रांति से हमारा मतलब अन्याय पर टिकी वर्तमान व्यवस्था को बदलने से है। पिस्तौल और बम इनकलाब नहीं लाते, बल्कि इनकलाब की तलवार तो विचारों की सान पर तेज होती है। भगत सिंह ने लाहौर जेल में अपने द्वारा लिखी गई डायरी में भी अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया है। क्रांति के लिए रक्त संघर्ष आवश्यक नहीं है और न ही इसमें व्यक्तिगत प्रति हिंसा का कोई स्थान है। भगत सिंह ने कहा है कि लोगों को समझाना पड़ेगा कि भारतीय क्रांति क्या होगी। इसका मतलब केवल मलिकों की तब्दीली से नहीं, बल्कि एक नयी व्यवस्था कायम करने से होगा। इन्‍हीं बातों के साथ भगत सिंह को वनइंडिया का नमन।

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